स्टेट ऑफ होर्मुज़ संकट: ईरान-अमेरिका-इज़राइल टकराव और वैश्विक परिणा
बीते दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल मध्य-पूर्व बल्कि पूरी दुनिया में चिंता की लहर दौड़ा दी। अमेरिका द्वारा ईरान की न्यूक्लियर साइट्स पर किए गए हमले ने वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन को हिला कर रख दिया है। इस टकराव में अब अमेरिका और इज़राइल के साथ ईरान भी पूरी ताकत से उतर आया है। यह टकराव केवल एक क्षेत्रीय युद्ध नहीं रहा, बल्कि इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और सैन्य स्थिरता पर भी गहराई से पड़ने वाला है।
इस पूरी स्थिति में सबसे अहम पहलू बनकर उभरा है — “स्टेट ऑफ होर्मुज़” (Strait of Hormuz), जिसकी रणनीतिक और आर्थिक महत्ता अब एक बार फिर सुर्खियों में है।
स्टेट ऑफ होर्मुज़: क्यों है इतना अहम?
स्टेट ऑफ होर्मुज़, पर्शियन गल्फ और गल्फ ऑफ ओमान के बीच स्थित एक संकीर्ण जलमार्ग है। इसका नैरोस्ट पॉइंट मात्र 21 नॉटिकल माइल्स का है। यह जलमार्ग ईरान और ओमान के बीच स्थित है — न कि केवल ईरान और यूएई के बीच जैसा कि कई लोग समझते हैं।
यहां से होकर विश्व के लगभग 20-30% कच्चे तेल (Crude Oil) का ट्रांसपोर्ट होता है। क़तर, जो दुनिया का सबसे बड़ा LNG (Liquefied Natural Gas) उत्पादक है, वही भी अपने अधिकांश गैस निर्यात इसी रास्ते से करता है। सऊदी अरब, यूएई, इराक, कुवैत — सभी बड़े तेल निर्यातक देश इसी मार्ग पर निर्भर हैं।
ईरान का निर्णय: क्यों लिया “ब्लॉकेड” का रास्ता?
ईरान की संसद ने हाल ही में मंज़ूरी दी है कि यदि जरूरत पड़ी तो स्टेट ऑफ होर्मुज़ को बंद किया जा सकता है। इस कदम को अमेरिका ने ‘Economic Suicide’ यानी आर्थिक आत्मघात करार दिया है।
ईरान का ये निर्णय तीन मुख्य कारणों पर आधारित है:
- अमेरिकी एयर स्ट्राइक: अमेरिका ने बी-2 बॉम्बर्स के जरिए ईरान की फदो न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमला किया। ये ईरान की रेड लाइन थी। अब जब यह पार हो गई, तो जवाबी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
- राजनीतिक और आंतरिक दबाव: IRGC (Islamic Revolutionary Guard Corps) और हार्डलाइनर गुट ईरान सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि एक आक्रामक नीति अपनाई जाए।
- NPT से हटने का संकेत: ईरान ने यह भी संकेत दिया है कि वह नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी से खुद को अलग कर सकता है, जिससे उसका परमाणु कार्यक्रम हथियारों में तब्दील हो सकता है।
ब्लॉकेड के संभावित परिणाम
1. वैश्विक आर्थिक संकट
- सालाना $1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के तेल-गैस का व्यापार इस मार्ग से होता है।
- यदि यह मार्ग बंद हुआ, तो कच्चे तेल की कीमतें $200 प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
- इससे महंगाई, ग्लोबल इनफ्लेशन और मंदी (Recession) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
2. अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन
- स्टेट ऑफ होर्मुज़ एक अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग है, जिसे कोई देश बंद नहीं कर सकता।
- United Nations Convention on the Law of the Sea (UNCLOS) इसका उल्लंघन मानेगा।
- हालांकि, ईरान इसे “Self-Defense” कहकर सही ठहराने की कोशिश कर रहा है।
3. सैन्य टकराव की संभावना
- बहरेन में स्थित अमेरिका की 5th Fleet यहां तैनात है।
- ईरान की IRGC के पास तेज़ रफ्तार क्राफ्ट, ड्रोन, समुद्री माइंस और सबमरीन हैं जो टकराव बढ़ा सकते हैं।
- इज़राइल भी इसमें शामिल होकर युद्ध को और व्यापक बना सकता है।
चीन की भूमिका: अमेरिका की उम्मीद
अमेरिका ने चीन से अपील की है कि वह ईरान पर दबाव डाले ताकि वह स्टेट ऑफ होर्मुज़ को बंद न करे। इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं:
- चीन ईरान से सबसे बड़ा तेल आयातक है — लगभग 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन।
- चीन ने ईरान में $400 बिलियन से अधिक निवेश किया है।
- चीन और ईरान के बीच एक रणनीतिक संधि भी है।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन के खाड़ी क्षेत्र से गहरे व्यापारिक संबंध हैं।
लेकिन चीन की स्थिति भी दुविधा भरी है:
- उसे ग्लोबल रिसेशन टालना है, क्योंकि उसे खुद ऑयल चाहिए।
- दूसरी ओर, वह अमेरिकी प्रभाव को चुनौती भी देना चाहता है।
भारत के लिए क्या मायने रखता है यह संकट?
1. ऊर्जा आपूर्ति में बाधा
- भारत अपनी ज़रूरत का 85% तेल आयात करता है, जिसमें से बड़ा हिस्सा गल्फ से आता है।
- हालांकि भारत ने अब रूस से काफी तेल खरीदना शुरू किया है, लेकिन स्टेट ऑफ होर्मुज़ की निर्भरता अभी भी बनी हुई है।
2. तेल की कीमतों में उछाल
- यदि तेल की कीमतें $150 या उससे ऊपर जाती हैं, तो भारत की GDP, रुपये की वैल्यू, और महंगाई पर गहरा असर पड़ेगा।
3. सरकारी तैयारियां
- भारत के पास लगभग 10 दिनों का स्ट्रैटेजिक रिज़र्व है।
- तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आश्वस्त किया है कि भारत स्थिति पर बारीकी से नज़र रखे हुए है और सप्लाई डाइवर्सिफिकेशन की नीति जारी है।
संभावित दो परिदृश्य: क्या होगा आगे?
1. बेस्ट केस सिनेरियो
- चीन, ईरान को मनाता है कि वह ब्लॉकेड न करे।
- कूटनीतिक समाधान निकलता है और ऑयल की कीमतें स्थिर रहती हैं।
2. वर्स्ट केस सिनेरियो
- ईरान ब्लॉकेड करता है, अमेरिका सैन्य कार्रवाई करता है।
- युद्ध फैलता है, तेल सप्लाई बाधित होती है, वैश्विक मंदी आती है।
निष्कर्ष
“स्टेट ऑफ होर्मुज़” केवल एक जलमार्ग नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा और सुरक्षा संतुलन की धुरी है। अमेरिका-ईरान-इज़राइल के बीच बढ़ता तनाव और चीन की रणनीतिक चुप्पी इस संकट को और जटिल बना रही है। भारत जैसे विकासशील देशों को इस परिस्थिति में बेहद सतर्क और रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ना होगा।
हमें आशा है कि इस गंभीर संकट का समाधान कूटनीति से निकले — वरना यह टकराव दुनिया को एक और वैश्विक संकट की ओर धकेल सकता है।
आपका क्या मानना है इस पूरे मसले पर? क्या चीन हस्तक्षेप करेगा? क्या ईरान अपने फैसले से पीछे हटेगा? अपने विचार कमेंट में ज़रूर साझा करें।
