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Searching for Home Among the Stars: Planets That Rival Earth

Searching for Home Among the Stars
  • Searching for Home Among the Stars: Planets That Rival Earth -कॉलिस्टो की इस सर्विस के नीचे पूरा का पूरा समुद्र है साइंटिस्ट को 24 एक्सोपैंट्स में से दो ऐसे सुपर हैबिटेबल प्लैनेट्स मिले हैं दोनों ही धरती से भी बटर है लेकिन साइज में ये धरती से 8 गुना बड़ा है हमारे सोलर सिस्टम में ही एक ऐसा प्लेनेट मौजूद है जिस पर रहने की कंडीशन धरती से भी बटर है पर इसके बावजूद कोई इसको नोटिस तक नहीं कर रहा वो इसका नाम है कलिस्टो जो की जुपिटर का सेकंड लार्जेस्ट मून है और इस इमेज के अंदर आप जी व्हाइट चीज को देख रहे हो वेसल में कलिस्टो पर मौजूद बर्फी है शुरुआत में तो इसे सोलर सिस्टम की एक डेट आईएनएक्टिव रॉकी बॉडी घोषित किया गया था पर 1990 में साबित हो गया की कलिस्टो की इस सर्विस के नीचे पूरा का पूरा समुद्र है जिसका इस्तेमाल जल्दी रॉकेट प्रोपोरेंट्स बनाने के लिए किया जाने वाला है एस्टॉनोमर्स ने कलिस्टो के ऊपर एक एटमॉस्फेयर को भी डिटेक्टर किया है और उनका अंदाज़ है की अगर जुपिटर से ए रही रेडिएशन को रॉक दिया जाए तो इंसान जुपिटर की शान पर बहुत ही आसानी से सांस भी ले पाएगा हमारी करंट अंडरस्टैंडिंग के हिसाब से देखें तो फिलहाल धरती ही यूनिवर्सल क्लॉथ ऐसा प्लेनेट है जहां पर लाइफ एक्जिस्ट करती है लेकिन पिछले समय साइंटिस्ट ने यूनिवर्स के अंदर कुछ ऐसे हैबिटेबल प्लैनेट्स खोज निकले जून सिर्फ सभी मैनो में हमारी धरती से बटर है आपको बिल्कुल किसी सुपर आने वाली फीलिंग आएगी फिफ्थ अक्टूबर 2020 को एस्ट्रोलॉजिस्ट ने अपने मिशन की शुरुआत की जिसके तहत उन्होंने ऐसे प्लैनेट्स को अपना टारगेट बनाया जो सभी मैनो में धरती से भी डरते थे और आप यकीन नहीं करोगे की उन्हें ऐसे प्लैनेट्स भी मिले जो एक या दो नहीं बल्कि पूरे के पूरे 24 थे इन सुपर हैबिटेबल प्लैनेट्स को खोजना के लिए नाखून और उनकी टीम ने एक अलग ऑब्जरवेशन करने का डिसाइड किया जिसके लिए उन्होंने क्राइटेरिया की एक लिस्ट बनाई और जो भी प्लेनेट क्राइटेरिया की उसे लिस्ट को फॉलो कर रहा था तब इसका सीधा सा मतलब था की वो सुपर हैबिटेबल प्लेनेट है जब भी कोई प्रॉपर प्लेनेटरी सिस्टम मिलता है तब उसमें सबसे पहले कम होता है वो प्लेनेट और उसके होस्टार के बीच के डिस्टेंस को मेजर करना क्योंकि इससे ही हमें पता चल जाता है की वो प्लेनेट अपने हैबिटेबल जॉन में है या नहीं और अगर है तो उसे पर कितना वाटर परसेंटेज होगा हैबिटेबल प्लैनेट्स खोजने के अगले क्राइटेरिया की बात करें तो वो है साइज और मास ऑफ प्लैनेट्स क्योंकि किसी भी प्लेनेट का मांस और साइज लाइफ को इवॉल्व होने में इन्फ्लुएंस कर सकता है अब जितना प्लेनेट का साइज होगा उतनी ही ज्यादा जगह मौजूद होगा इंसानों के रहने के लिए और प्लैनेट्स का मांस जितना ज्यादा होगा उतनी ही ज्यादा उसे पर ग्रेविटी भी होगी और इससे ज्यादा ग्रेविटी की वजह से वह प्लेनेट हवा को जमीन के करीब रखेगा जिससे उसका एटमॉस्फेयर काफी ज्यादा मोटा और स्टेबल रहेगा साइज और मास वाले क्राइटेरिया के बाद अब बात करते हैं हमारे नेक्स्ट क्राइटेरिया यानी की टेंपरेचर की जिसमें इन प्लैनेट्स का टेंपरेचर धरती से 5 डिग्री सेल्सियस ऊपर या नीचे हो सकता है क्योंकि धरती के मिडिल वाले एरिया यानी ट्रॉपिकल रीजन में पनप रहे हैं माइक्रोब्स इसी तरह के एक्सट्रीम टेंपरेचर में सरवाइव करते हैं अब इन्हीं सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए साइंटिस्ट को 24 एक्सएंप्लॉयमेंट में से दो ऐसे सुपर हैबिटेबल प्लैनेट्स मिले हैं जिनका सरफेस टेंपरेचर और एटमॉस्फेयर दोनों ही धरती से भी बटर है जिम से एक है न्यूटन बी प्लेनेट इस प्लेनेट को 2017 में पहले बार ऑब्जर्व किया गया था तब पता चला की इस पर ना सिर्फ पानी है बल्कि किसी भी लाइफ फॉर्म की जिंदा रहने के लिए सभी जरूरी चीज जैसे की हाइड्रोकार्बन और अमीनो एसिड भी भारी मात्रा में मौजूद है यह प्लेनेट इंसानों के रहने के लिए इतना अच्छा है की रिसर्च के मुताबिक इसके परफेक्शन के पीछे किसी एलियन का हाथ बताया जाता है और इसी पॉसिबिलिटीज को देखते हुए अक्टूबर 2017 और 18 में मेथी नाम की ऑर्गेनाइजेशन ने इस प्लेनेट पर कई मैसेज भेजें हैं जिम से एक मैसेज में अलग-अलग म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की आवाज और दूसरे मैसेज के अंदर यूनिवर्स में हमारी लोकेशन का साइंटिफिक ट्यूटोरियल है जिससे की अगर न्यूटन भी पर इंटेलिजेंट लाइफ मौजूद हुई तब हमें उसके बड़े में एक एन एक दिन जरूर पता चलेगा अब अगला सुपरहैबिटेबल एरिया है तापी स्टार सिस्टम कहां जाता है धरती के रेगिस्तान में जितने मिट्टी के कान है उतने ही तारा पूरे ब्रह्मांड में मौजूद है अब अगर सितारे ही इतने है तो सोचिए प्लैनेट्स कितने होंगे और इतने अब बुक हर वो प्लैनेट्स में सिर्फ हमारी धरती पर ही लाइफ एक्जिस्ट करती है ऐसा होना तो लगभग नामुमकिन सा लगता है हमारी धरती से कई 39 लाइट एयर दूर एक ऐसा स्टार सिस्टम मौजूद है जहां एक या दो नहीं बल्कि पूरे साथ धरती जैसे प्लैनेट्स अपने स्टार का चक्कर लगा रहा है और इनमें से तीन प्लैनेट्स अपने हैबिटेबल जॉन में ऑर्बिट कर रहा है ट्राई स्टोन नाम की स्टार सिस्टम के डिस्कवरी पहले बार साल 2017 में की गई थी इसके प्लैनेट्स धरती से भी ज्यादा पुराने है मतलब की प्लैनेट्स पर जो लाइफ होगी वो धरती के पुरी तरह फॉर्म होने से पहले लगभग तीन बिलियन साल तक ऑलरेडी डेवलप कर गई होगी अभी सभी प्लैनेट्स बृहस्पति ग्रह के साइड जितने एक टाइनी रेड स्टार का चक्कर लगा रहा है और ये स्टार हमारे सूरज के कंपैरिजन में काफी ठंडा है ये प्लेनेट अपनी ऑर्बिट पर टाइटेनिक लोग भी है मतलब की इनकी एक साइड स्टार को फेस करते हुए हमेशा गम राहत है और दूसरी साइड बिल्कुल उसका उल्टा यानी की ठंडा राहत है और ये खुद अपने एक्सिस पर चेक कर नहीं लगती अगर ये सभी कंडीशंस परफेक्ट रही तब ठंड और गर्मी वाले रीजन के बीच में एक ऐसी पत्नी से स्ट्रिप एरिया होगी जहां जीवन आराम से ट्रैफिक सोलर सिस्टम में प्लैनेट्स एक दूसरे के इतने ज्यादा करीब है की अगर आप इनमें से किसी एक पर खड़े होकर आसमान में देखेंगे तब आपको स्टार सिस्टम के बाकी प्लैनेट्स अपने चारों तरफ घूमते हुए दिखेंगे टी स्टार सिस्टम स्टार सिस्टम में दो प्लैनेट्स इसके हैबिटेबल जॉन में आता है जो की है टॉय 700d और टॉय 700d यह दोनों ही एक्सो प्लेनेट का मास हमारी धरती जैसा ही है जहां टी 700d 28 दिन में अपने सूरज का चक्कर लगता है तो वही कोई टी 700d 37 दिन में और दोनों ही धरती के साइज के लगभग बराबर है अगर इन दोनों प्लेनेट पर ही एक तरह का एटमॉस्फेयर हुआ तब इनका तापमान हमारी धरती से भी ज्यादा होगा जो उनकी हैबिटेबिलिटी के लिए एक गेम चेंजर है साइंटिस्ट ने पाया की टॉय 700d पर बहुत से प्लांट्स मौजूद है और अगर किसी भी नाम यहां पर पहुंच गए तब वो लाइफ फार्मिंग प्लांस हमारे धरती के जैसा ही होगा लेकिन की ऐसा थियोरेटिकल पॉसिबल है की दूसरे प्लेनेट पर धरती जैसा ही लाइव पर मौजूद हो वेल इवोल्यूशन एक ऐसी चीज है जिसे ग्रेविटी की तरह ही नेचर का यूनिवर्सल डॉ माना गया है यानी वो नियम जो ब्रह्मांड के हर जगह कम करता है इस प्रोसेस में एक दूसरे से रिलेट करने वाली स्पीशीज एक जैसे प्राकृतिक मुश्किलों का सामना करते हुए इवॉल्व हो जाता है क्योंकि किसी भी एलियन प्लेनेट लाइफ का स्टार्टिंग पॉइंट काफी सिंपल राहत है जो सुपर हैबिटेबल प्लैनेट्स होंगे वो काफी पुराने होंगे साथ ही उसका साइज काफी बड़ा टेंपरेचर वार्म और धरती का मुकाबला वहां ज्यादा नामी होगी ये प्लैनेट्स ऐसे तारा को ऑर्बिट कर रहे होंगे जो हमारे सूरत से भी ज्यादा पुराने है और उनका लाइफ स्पैन भी सूरत से लंबा होगा ऐसा माना जाता है की हमारा सूरज करीब दास विलन सालों तक एग्जिट करेगा और जब्बा धरती पर मौजूद लाइफ की आई है तब धरती पर परिसर लाइफ फॉर्म होने में कई कर बिलियन सा लगे हालांकि कुछ तारा ऐसे है जिनकी लाइफ हमारे सूरज से भी ज्यादा लंबी है जिसके चलते उनके प्लैनेट्स पर लाइफ को एवं होने का ज्यादा समय मिल जाता है तो अब सवाल आता है की आखिर हम इन प्लैनेट्स में एलियन लाइफ को ढूंढेंगे कैसे इसके लिए सबसे पहले हमें कास्ट को ढूंढना होगा जिन्हें सिंपल शब्द में रेड डॉल भी कहा जाता है रेड डोर बाकी तारा का मुकाबला काफी ठंडा होते हैं और उनकी लुमिनोजिटी यानी की रोशनी भी काफी कम होती है साथ ही साथ ये 20 से 70 मिलियन सालों तक मौजूद में रहते हैं अगर हम धरती से कंपेयर करें तो रेड ड्वॉर्फ को ऑर्बिट करने वाले किसी प्लेनेट पर अगर लाइफ मौजूद है तब उसको इवॉल्व और अडॉप्ट होने में धरती से भी ज्यादा समय मिल गया होगा और इसकी इडली लगभग 5 से 8 बिलियन साल होगी मतलब हो सकता है की आज की तारीख में जी प्लेनेट पर लाइफ का नामोनिशान नहीं है वहां से लाखों करोड़ साल बाद एलियंस रहने लगे और शायद तब तक हम इंसानों को अस्तित्व ही इस यूनिवर्सिटी गायब हो जाए इसी के चलते हमारे लिए लाइफ बहुत ही मुश्किल है कोई प्लैनेट्स इंदु प्लैनेट्स का नाम है की  57154.01 अभी दोनों ही लाइफ के इवोल्यूशन के लिए बिल्कुल परफेक्ट है पहले प्लेनेट ky5715.01 का सरफेस टेंपर धरती का मुकाबला सिर्फ 2.4 डिग्री सेल्सियस ही कम है लेकिन साइज में ये धरती से 8 गुना बड़ा है जिसका मतलब इसका लैंड सर्फेस एरिया और ग्रेविटी धरती से काफी ज्यादा होगी अब अगर पानी की बात की जाए तो इसके खुद के सूरज और प्लैनेट्स के बीच की दूरी के अकॉर्डिंग यहां बहुत सारा पानी मौजूद तो जरूर होना चाहिए दूसरे प्लेनेट का टेंपरेचर 27 डिग्री सेल्सियस है जो आपको एक में रहने जैसा फीलिंग देगा तो इससे एक बात तो क्लियर है की कंफर्ट के मामले में ये प्लेनेट हमारे लिए परफेक्ट है अब यहां जमीन के टेक्निक प्लेट्स की हलचल की वजह से नाइट्रोजन साइकिल कंटीन्यूअस चलती रहती है अब आप बोलोगे की नाइट्रोजन से लाइव फ्रॉम थोड़ी ना होगा बिकॉज़ हम में से ज्यादातर लोगों को लगता है की धरती पर ऑक्सीजन ज्यादा होना मोस्ट इंपॉर्टेंट है पर सच तो ये है की धरती पर सबसे ज्यादा नाइट्रोजन है यहां तक हवा में भी 70% सिर्फ नाइट्रोजन ही है और यही नाइट्रोजन प्रोटीन जैसी केमिकल फॉर्म में कन्वर्ट होती है जो हम इंसानों के रहने के लिए आइडियल स्टेशन पैदा करती है अब तक खोज गया मोस्ट आर्ट लाइक प्लैनेट्स है और अगर इसके एटमॉस्फेयर बहुत हद तक धरती जैसा हुआ तब इसका सेल्फिश टेंपरेचर भी करीब 28 डिग्री सेल्सियस जितना ही होगा मतलब की हम इंसानों के रहने के लायक है और इस प्लेनेट का सूरज भी हमसे सिर्फ 12.4 लाइटर दूर है धरती से 1800 लिकर दूर साइनस कांस्टेलेशन में थे एक ऐसा ही एक्सो प्लेनेट है केप्लर फोर फाइव तू भी ये एक्सो प्लांट से 85 दोनों में अपने स्टार को एक बार रिवॉल्व करता है और इसके एवरेज टेंपरेचर कई 1.6 डिग्री सेल्सियस है साइंटिस्ट का मानना है की इसकी सरफेस पर लिक्विड वाटर एक्जिस्ट करता है और शायद यहां पर हम जैसे जिंदा जीव र रहे होंगे पर इसकी ग्रेविटी शायद हमारी सपना को तोड़ दे केप्लर फोर फाइव तू बी धरती से 60% ज्यादा मैसिव है जिसके करण इसकी ग्रेविटी काफी ज्यादा है अब इतनी ही ग्रेविटी में जीवो का जमीन पर रह पाना तो बिल्कुल भी पॉसिबल नहीं लगता लेकिन इसके एटमॉस्फेयर की आईडी डेंसिटी को देखते हुए पॉसिबिलिटीज है की यहां हमें उड़ने वाले जीवो की भरमार हो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा प्रोड्यूस की गई सिमुलेशन की मां ने तो वहां हवा में उड़ने वाली विशाल स्टीम करेज हो शक्ति है और बैलून की साइज के वेटर भी हो सकते हैं अगर हम इंसान इस एक्सो पेंट पर जाते हैं तो शायद वहां पर हम सस्टेन ना कर पे क्योंकि इसके एक्स्ट्रा ग्रेविटी के करण हमारी हार्ट बीट डबल हार्ट पर ज्यादा स्ट्रेस पढ़ने के करण ब्लू प्रेशर भी ऑलमोस्ट डबल हो जाएगा और स्ट्रोक आने का खतरा और भी ज्यादा बाढ़ जाएगा अब बात करते हैं अगली 667 सीसी की ये धरती से 24 लाइट एयर दूर स्कॉर्पियो एस कंसोलेशन में स्थित है और ट्रिपल स्टार सिस्टम वाले रेड ड्वॉर्फ के अराउंड रिवॉल्व करता है हमारे ग्रह से 1.5 टुनाइट अपने स्टार के साथ टाइटल लॉक है जी वजह से इसकी एक साइड हमेशा स्टार की और रहती है और दूसरी साइड पर रोशनी का नामोनिशान नहीं पहुंचता जिसका नतीजा ये होता है की एक और रेगिस्तान से भी ज्यादा गर्मी होती है और दूसरी और साल भर अंटार्कटिका की तरह पर हमने वाली सर्दी होती है ये दोनों साइड जी लाइन पर मिलती है उसे टॉयलेट जॉन कहा जाता है और यहां का टेंपरेचर रहने लायक हो सकता है ऐसी वो की यूनिवर्सिटी और पुर्तगालियों के रिसर्च का कहना है की यहां का टेंपरेचर 27 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है और यहां पर लिक्विड वाटर की प्रेजेंस भी पॉसिबल है या सिमुलेशन यहां पर ये पांच पैरों वाले स्पाइडर जैसे जीव डॉग के साइज के होंगे और गम इलाकों में रॉक्स के नीचे में डीटेल्स का शिकार करते होंगे पर सवाल है की क्या इंसान ब्लू सेक्सी है और नहीं भी अगर बात कुछ दोनों की है तो हम आराम से यहां पर र पाएंगे लेकिन ये एक्सोप्लैंड अपनी यूनिक ऑर्बिट के करण तितली हीटिंग शो करता है होता कुछ यू है की इसकी ग्रेविटेशनल एनर्जी थर्मल एनर्जी में कन्वर्ट हो जाति है इससे प्लेनेट का इंटीरियर हिट होता है(Searching for Home Among the Stars) और वोल्कानोइस और गीजर एक्टिव हो जाते हैं इस करण से सर्विस का टेंपरेचर अचानक से बहुत हाय चला जाता है और शायद हम इंसान इतने टेंपरेचर में सरवाइव ना कर पे अब मैं आपको ले जान वाला हूं धरती से 36.7 लाइट एयर दुरूटेस्ट कांस्टेलेशन के ब्राइटेस्ट स्टार डायरेक्टर्स के सर पर ये ग्रेट गैंगस्टर है और इसकी ब्राइटनेस हमारे सूरज से सो गुना ज्यादा है अपनी करंट टेक्नोलॉजी से हम एक्ट्रेस प्लेनेट खोजना में नाकाम रहे हैं पर यही सिमुलेशन के अनुसार एक समय यहां पर धरती जैसे प्लेनेट एक्जिस्ट करता था साइंटिस्ट ने इसको एक्ट्रेस से नाम दिया है जब एक्ट्रेस रेगिस्तान में बादल गया और स्टार के अंदर ही सम गया अगर उसे समय एक्ट्रेस ए पर कोई एलियन सिविलाइजेशन रहती होगी तो शायद उसने स्टैटिसट्राफी को पहले से ही प्रिडिक्ट कर लिया था और वो आपने आपको इससे बचाने के लिए इतनी एडवांस भी बन चुकी होगी हो सकता है वो एडवांस सिविलाइजेशन आज भी एक्ट्रेस विशाल ग्लासडोर्स के अंदर रहती हो ऐसे ग्लासडोर्स के अंदर हजारों प्लैनेट्स लगे हुए होंगे जो वहां के जीवो के लिए पानी और ग्लूकोस का फॉर्मेशन करेंगे जिम दिमाग तो होगा पर बॉडी के नाम पर सिर्फ सिस्टम होगा देखने में अलग-अलग जीव लगेंगे पर कंप्यूटर नेटवर्क की तरह ये सभी आपस में कनेक्ट होंगे अमेरिका के ओरेगॉन में रिसचर्स को कुछ ऐसा ही प्लांट्स मिला है जिसे आर्मी लिए ओस्टियो नाम दिया गया है ये डी स्क्वायर किलोमीटर में फाइल हजारों मशरूम के ग्रुप की तरह नजर आता है दरअसल में एक विशाल आर्गनिज्म है अगर एक्ट्रेस आज जैसा कोई एक्सो प्लेनेट सच में होगा तो वो धरती से काफी पहले बन गया होगा और इस हिसाब से उसे पर इंटेलिजेंट लाइफ फॉर्म को एवर होने का काफी समय मिल गया होगा मतलब काफी चांसेस है की हमें वहां एलियन देखने को मिल जाए पर हम इंसानों के लिए वहां कोई जगह नहीं होगी क्योंकि हमें ऐसी कंडीशन में सरवाइव नहीं कर पाएंगे हम इंसान जब भी धरती से बाहर हैबिटेट की खोज करते हैं तो हम ऐसे एक्सो प्लांट खोज रहे होते हैं जिसके लिविंग कंडीशन कुछ हद तक हमारे प्लेनेट की तरह हो पर क्या बिलीव करोगे की एक ऐसा भी प्लेनेट है जो धरती से भी ज्यादा हैबिटेबल हो सकता है मैं बात कर रहा हूं धरती के सबसे करीब वाला स्टार सिस्टम अल्फा सेंचुरी में घूमते एक एक्सो प्लांट अल्फा सेंचुरी इसी की ऐसा कहा जाता है की यहां पर धरती से भी ज्यादा ऑक्सीजन है और क्योंकि एक ट्रिपल स्टार सिस्टम है तो यह एक नहीं बल्कि तीन स्टार से लाइट आई है हो सकता है की प्लेनेट पर चारों और पेड़-पौधे लगे हो और खाने की कोई कमी ना हो एक्सेस ऑक्सीजन के करण यहां के जीवन की साइज हमेशा काफी बड़ी होगी हो सकता है की आज भी यहां कोई जीव राहत हो और धरती के जीवो की तरह वो भी सरवाइव की रेस में भाग रहे हो पर सवाल तो ये है की क्या हम इंसान इस प्लेनेट को अपना फ्यूचर हम बना सकते हैं आई सिमुलेशन और साइंटिफिक स्टडी में ये पाया गया है की लाइफ की पॉसिबिलिटीज के लिए ये प्लेनेट धरती से भी बेहतर होना चाहिए यहां का टेंपरेचर इंसानों के लिए ऑप्टिमम होगा और यहां पर लिक्विड वाटर की पेज भी होगी पर ट्रिपल स्टार सिस्टम में होने के करण यहां के सीजन चेंज बहुत ही एक्सटम लेवल का मौसम ला सकता है जैसे यहां गर्मियों के मौसम में तापमान 60 डिग्री सेल्सियस को टच कर सकता है और सर्दियों के मौसम में ये माइंस 90 डिग्री तक पहुंच जाता है इतने एक्सट्रीम टेंपरेचर हमें धरती पर हजार सालों में एक बार ही देखने को मिलता है चाहे सहारा के गम रेगिस्तान हो या अंटार्कटिका का बर्फीला मैदान हम इंसानों ने हर जगह बनाई है और हम स्पेशल इक्विपमेंट्स की मदद से अल्फा स्टोरी सिप्पर भी जरूर सरवाइव कर लेंगे साल 2005 में साइंटिस्ट के पास सैटर्न के मुंह टाइटन से कैसे सिग्नल आता है जो इस बात की और इशारा करता है की हमारे सोलर सिस्टम में हम इंसानों के अलावा भी कोई और एलियन लाइफ मौजूद है इस सिग्नल में कुछ ऐसा था जिससे साइंटिस्ट को टाइटन पर वाटर हाइड्रोजन मीथेन और नाइट्रोजन साइकिल होने के सबूत मिले और ये साड़ी चीज कोई नॉर्मल बात नहीं है क्योंकि ये चीज वही है जिनके करण आज धरती पर भी जीवन संभव है और यही करण है की साइंटिस्ट का मानना है की टाइटन पर भी 100% कोई ना कोई लाइफ तो जरूर है अब सवाल ये आता है की ऐसा क्या उसे सिग्नल में था की साइंटिस्ट इतने सर हो गए की टाइटन पर कुछ ना कुछ तो जरूर चल रहा है टाइटल पर जीवन की खोज की शुरुआत सन 1944 में स्टार्ट हो गई थी उसे वक्त टच अमेरिकन एस्टॉनोमर्ट के ऊपर टाइटन पर जीवन की खोज कर रहे थे और इसी दौरान उन्होंने देखा की टाइटन के एटमॉस्फेयर धरती पर रहने वाले जीवन के लिए बिल्कुल आइडियल है हालांकि के ऊपर की ये रिसर्च उनके अनुमानों आधारित थी लेकिन फिर भी वैज्ञानिक जानते थे की टाइटन पर कुछ ना कुछ तो ऐसा है जो अलग है इसीलिए 15 अक्टूबर 1997 को टाइटन पर खोज के लिए कैसे नहीं उगने को लॉन्च किया जाता है ये प्रूफ धरती से तो सही सलामत लॉन्च होता है लेकिन ये जैसे ही टाइटन के एटमॉस्फेयर में पहुंचता है तो इसमें से कुछ फ्रीक्वेंसी आना शुरू हो जाता है साइंटिस्ट को लगा की ये फ्रीक्वेंसी प्रोब में कुछ प्रॉब्लम होने की वजह से आया है इसीलिए ये खुद ही जेनरेट हो रही होगी लेकिन जब उन्होंने इसकी जांच की तो हैरान र गए दरअसल्या फ्रीक्वेंसी को खुद जेनरेट नहीं कर रहा था बल्कि टाइटन के एटमॉस्फेयर से जेनरेट हो रही थी साइंटिस्ट के मुताबिक इसके पीछे दो करण हो सकते थे या तो टाइटन का एटमॉस्फेयर या फ्रीक्वेंसी जेनरेट कर रहा था या फिर वहां पर मौजूद किसी दूसरे एलियन लाइफ के करण यह सब हो रहा था अब जब प्रूफ ज्यादा टेस्टिंग के लिए टाइटन की जमीन पर उतरता है और वहां पर मिट्टी के कुछ सैंपल्स लेट है तो वहां उसे कुछ अजीब दिखाई देता है जब उसने टाइटन की मिट्टी की केमिकल टेस्टिंग की तो पता चला की टाइटन के एट मंदिर में हाइड्रोजन फॉर्मेशन तो होता है और ये पूरे एटमॉस्फेयर में इक्वली डिस्ट्रीब्यूशन भी हो रहा है लेकिन जहां ये हाइड्रोजन अपने हल्के शब्द के करण एटमॉस्फेयर में रहना चाहिए वहीं पर ये गायब हो रहा है अब ये हैरानी की बात इसलिए है क्योंकि हमारी धरती पर कई ऐसे स्पीशीज है जो धरती के एटमॉस्फेयर से हाइड्रोजन खींचकर जिंदा रहती है और अगर हम इसे टाइटन पर देखें तो टाइटन पर भी यही हो रहा है इसीलिए साइंटिस्टों का अनुमान है की टाइटन पर भी ऐसी स्पीशीज मौजूद है इसके अलावा टाइटन के एटमॉस्फेयर में एसिटिलीन और नाइट्रोजन के अमांडा बहुत ही कम है धरती पर गए इसे ग्राउंड वाटर माइक्रो आर्गनिज्म है जो एसिडिटी इन पर जिंदा रहती है इसीलिए पॉसिबिलिटीज है की टाइटन पर भी ऐसे ही माइक्रो ऑर्गेनाइज है लेकिन इन माइक्रो ऑर्गेनाइज के बड़े में सबसे खास बात ये है की पानी में नहीं बल्कि एथेन और मीथेन में राहत है साइंटिस्ट के मुताबिक यही माइक्रो ऑर्गेनाइज टाइटन के एटमॉस्फेयर में नाइट्रोजन की मंत्र बड़ा रहे हैं और यही नाइट्रोजन साइकिल हमें धरती पर भी दिखाई देती है टाइटल पर होने वाले फाल्कन भी इससे पुरी लाइफ के बड़े में काफी कुछ बताता है जब साइंटिस्ट ने इसकी मिट्टी के सैंपल्स की जांच की तो उन्हें पता चला की टाइटन पर होने वाले वोल्कानिक इरप्शन में गम दहेकता हुआ लावा नहीं बल्कि बर्फ जैसी ठंडी अमोनिया और मीथेन निकलते है और ये दो सब्सटेंस ऐसे हैं जो किसी भी लाइफ के उत्पत्ति के लिए बहुत जरूरी होता है वैज्ञानिकों को इस बात पर बहुत ही विश्वास है की टाइटन पर भी लाइफ है हालांकि ये लाइफ ऑक्सीजन पर नहीं बल्कि मीथेन पर सरवाइव करती है टाइटन पर लाइफ है या नहीं इस बात को लेकर साइंटिस्ट अभी तक शो नहीं है लेकिन सवाल यह आता है की क्या होगा अगर टाइटन पर किसी और प्लेनेट से कोई और लाइफ सेंड किया जाए तो क्या वहां पर सरवाइव कर पाएगा टाइटेनिक ऐसा मून है जिसके कई कंडीशंस धरती से मैच करता है जैसे धरती के एटमॉस्फेयर में पानी कैसे छोटे ड्रॉप्स है जो इसका कॉस्मिक रेडिएशन से बचाव करता है ठीक इस तरह टाइटन के एटमॉस्फेयर में भी इथेनॉल मीथेन इसका कॉस्मिक रेडिएशन से बचाव करता है जी करण यहां पर रहने वाली लाइफ को प्रोटेक्शन मिलता है टाइटल के एटमॉस्फेयर में के लिए जरूरी ऑक्सीजन ही एक मंत्र ऐसा सब्सटेंस है जो मौजूद नहीं है लेकिन इसका भी एक सॉल्यूशन है टाइटन की जमीन के नीचे इस वाटर्स है और इलेक्ट्रोलिसिस की मदद से हम इस वाटर से ऑक्सीजन जेनरेट कर सकते हैं जिसका मतलब है की हमें ऑक्सीजन के लिए परेशान होने की जरूर नहीं है टाइटन के कंपैरिजन अगर हमारे पर इस मंगल से करें तो मंगल पर ना तो पानी है और ना ही एटमॉस्फेयर है जिसका मतलब है की भविष्य में ह्यूमन के लिए टाइटन मार्च से अच्छा ऑप्शन हो सकता है लेकिन टाइटन भी हमारे लिए पुरी तरह से परफेक्ट नहीं है इसमें भी कुछ प्रॉब्लम्स है जैसे धरती के मुकाबला टाइटन सूरत से बहुत ही दूर है जी करण यहां पर धरती की सिर्फ फोन पर पहुंचती है और इसमें से 90% सनलाइट तो इसका मोटर एटमॉस्फेयर ही अब्जॉर्ब कर लेट है जी करण सरफेस तक हिट नहीं पहुंच पाती है और सरफेस का टेंपरेचर – 179 डिग्री सेल्सियस तक चलाजाता है और धरती पर तो हम माइंस 30 डिग्री के नीचे के टेंपरेचर पर भी सरवाइव नहीं कर पाते हैं तो टाइटन पर तो सोचना बेकार है हालांकि अगर हम हमारे धरती को देखें तो 3.7 बिलियन साल पहले धरती हुई टाइटन जैसा ही थी लेकिन इसी दिन हुए इलेक्ट्रिक स्पार्क ने सब कुछ बादल कर रख दिया धरती पर मौजूद फास्फोरस और हाइड्रोकार्बन को ब्रेक करके इन्हें राना में कन्वर्ट किया और आर ने कंबाइंड होकर डीएनए में कन्वर्ट हुआ जिससे की यूनिसेल्यूलर आर्गनिज्म की उत्पत्ति हुई और फिर यही यूनिसेल्यूलर कंबाइंड होकर मल्टीसेल्यूलर बने और फिर आगे चल के यही से इंसानों की उत्पत्ति हुईअब अगर देखा जाए तो टाइटन के हालात भी धरती के शुरुआती कंडीशन जैसा ही है इसलिए इस बात की पॉसिबिलिटीज काफी ज्यादा है की फ्यूचर में टाइटन पर भी कुछ ऐसा होगा जो यहां पर लाइफ के एग्जिट करने में मदद करेगा हालांकि टाइटन में कुछ ऐसे चेंज हो रहा है जिनके करण देखने पर ऐसा लगता है की टाइटन फ्यूचर में खत्म हो सकता है और इसे इतना टाइम नहीं मिलेगा यहां पर लाइफ एक्जिस्ट कर सके फ्यूचर में क्या होगा ये तो किसी को नहीं पता लेकिन आपको क्या लगता है क्या टाइटन पर कोई रह पाएगा | Searching for Home Among the Stars.

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