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Hype vs Reality: Is This Planet Really Hiding Life?

  • Is This Planet Really Hiding Life एक इंडियन ओरिजिन साइंटिस्ट ने क्या एलियन लाइफ को फाइनली खोज लिया है आपने ऐसे कई रिपोर्ट्स हाल ही में न्यूज़ चैनल्स में देखे होंगे स्ट्रोंगेस्ट एविडेंस येट ऑफ लाइफ प्लनेट 124 लाइट इयर्स अवे साइंटिस्ट डिटेक्टेड गैसेस इन द एटमॉस्फियर ऑन अर्थ ओनली कम लिविंग ऑर्गेनिज्म वी आर नॉट अलोन इन द यूनिवर्स मगर क्या यह सच भी है क्या आपको यह सुनकर कुछ गड़बड़ी नहीं लग रही निक्कू मधुसूदन एक आईआईटी वाराणसी के ग्रेजुएट साइंटिस्ट हैं जिन्होंने कैमब्रिज यूनिवर्सिटी में अपनी टीम के साथ मिलकर एक ऐसा ग्रह केप्लर 218 बी ढूंढ निकाला है जहां पर एलियन लाइफ होने की पक्की संभावना है अब इस घड़ी का इंतजार तो बड़े-बड़े साइंटिस्ट जैसे स्टीफन हॉकिंग एनरिको फर्मी और निकोला टेस्ला तक करते-करते चल बसे मगर क्या ऐसे न्यूज़ आज के तारीख में बहुत ही कॉमन नहीं हो गए हर साल ऐसी खबरें आ जाती है कि एलियन लाइफ फाइनली फाउंड और फिर चाहे वो ग्रह जैसे प्रॉक्सिमा सेंटोरी बी हो ट्रैपिस्ट वन सिस्टम के प्लनेट्स हो या एलएचएस 1140 बी और कैसे भूल सकते हैं केप्लर 452 बी को जिसे तो सुपर अर्थ कह दिया गया था जो अर्थ से भी ज्यादा बेहतर है लाइफ को सपोर्ट करने के लिए पर इन सबके बावजूद भी अनडिस्प्यूटेड फैक्ट तो यही है ना कि आज तक हमें एलियन लाइफ का कोई एविडेंस ही नहीं मिला है सो यह खोज जो निक्ू मधुसूदन ने की है केप्लर 28 बी ग्रह पर क्या यह भी बस सिर्फ एक हाइप है या इस बार सच में कुछ बहुत बड़ा हो चुका है वेल जब मैंने इस पर डिटेल रिसर्च किया ना तो मैंने तीन बहुत ही बड़ी डिस्कवरीज को पर्सनली कंफर्म किया ऐसी डिस्कवरीज जो आज से पहले कभी हुई नहीं इनफैक्ट हम कभी इसके करीब तक भी नहीं पहुंचे इन्हीं डिस्कवरीज में से एक है कि हमें एलियन लाइफ का ही मॉलिक्यूल शायद मिल गया है वेल कई सारे लोगों को ना हाइप और रियलिटी में डिफरेंस समझ नहीं आता क्योंकि वो सिर्फ न्यूज़ हेडलाइंस या फिर यूर्स के ओपिनियंस पर ही जाते हैं पर कोई भी इसके पीछे के एक्चुअल साइंस को नहीं समझता जो कि असल में बहुत ही इजी और मजेदार है और इसीलिए फ्रेंड्स मैं यह चाहता हूं कि ये फेक हाइप है या फिर रियलिटी इस सवाल का जवाब और कोई नहीं बल्कि आप खुद दोगे फुल साइंस एकदम सिंपल कहानी के रूप में समझाऊंगा 7 मार्च 2009 सुबह के 3:49 को नासा ने केप्लर स्पेस टेलिस्कोप को अंतरिक्ष में लॉन्च किया इसे पृथ्वी के ऑर्बिट के जगह पर सन की ऑर्बिट में डिप्लॉय किया गया क्योंकि यह कोई आर्म टेलिस्कोप नहीं होने वाला था बल्कि यह दूर दृष्टि रखकर सैकड़ों लाइट इयर्स पार ऐसे प्लेनेट्स खोज निकालने वाला था जो हमारी पृथ्वी से बहुत ही मेल खाते हैं और नतीजन जिनमें एलियन लाइफ होने की संभावना हाई हो और इसीलिए पृथ्वी इसके विज़न को ब्लॉक ना करे इसे सूरज के ऑर्बिट में डिप्लॉय किया गया 2009 से लेकर 2015 तक केप्लर स्पेस टेलिस्कोप बिना पलके झपकाए अंतरिक्ष के अनंत अंधेरे को घूरता चला गया कुछ स्पेसिफिक हरकतों को कैप्चर करने के लिए यह हरकत थी किसी स्टार से आती हुई रोशनी का डम होना क्योंकि यह बता सकता है कि शायद कोई प्लेनेट उस स्टार के सामने से पास हुआ हो उस स्टार से आती हुई रोशनी को ब्लॉक करते हुए और पता है केप्लर कितना पावरफुल है समझो अगर एक 1000 कि.मी दूर गाड़ी के हेडलाइट से निकलती रोशनी के सामने एक मक्खी भी आ जाए तो जो ब्राइटनेस डिम होगी उसे तक यह कैप्चर कर लेगा केप्लर के आंख गवाह बने यह ब्रह्मांड तो प्लेनेट से भरा हुआ है जो सितारों से भी कई ज्यादा संख्याओं में मौजूद है जबकि पहले हम सिर्फ कुछ ही ग्रहों के बारे में जानते थे बट फिर महज 4 सालों के अंदर ही अनफॉर्चूनेटली 2013 में केप्लर के साथ एक बड़ा हादसा हो गया उसके चार में से दो रिएक्शन व्हील्स एक-एक करके खराब हो गए अब रिएक्शन व्हील्स मानो स्पेसक्राफ्ट के पैर होते हैं जो टेलिस्कोप के डायरेक्शन को चेंज करने में हेल्प करते हैं और उसे स्टेबिलिटी देते हैं एक कार के स्टीयरिंग व्हील की तरह बट बिना मिनिमम तीन रिएक्शन व्हील्स केप्लर टेलिस्कोप किसी भी एक पैच ऑफ स्पेस पर स्टेबली पॉइंट नहीं कर सकता था और मिशन यहां पर ऑलमोस्ट फेल हो चुका था बिना कोई खास एलियन प्लनेट को डिस्कवर किए बट जुगाड़ू दिमाग लगाने पर इंजीनियर्स ने इसका एक ब्रिलियंट स्यूशन निकाला एक डायरेक्शन से आते हुए सन रेज के प्रेशर को इन्होंने स्टेबिलिटी के लिए यूज किया ठीक जैसे कैयाक करता है वाटर करंट में और इस जुगाड़ से मिशन की जान बचा ली गई पर इसका मतलब फिर यह था कि इसके बाद से केप्लर टेलिस्कोप अब सिर्फ एक लिमिटेड स्पेस एरिया पर ही नजर रख पाएगा और इसी लिमिटेशन की वजह से फिर नासा ने 2014 में अपने मिशन को रिीडफाइन करके सिर्फ और सिर्फ रेड ड्वार्फ सितारों पर ही नजर रखना शुरू कर दिया इस न्यू मिशन को फिर K2 मिशन नाम दिया गया और जहां इसके पहले के सारे डिस्कवर्ड प्लनेट्स के आगे सिर्फ केप्लर या के लगा करता था जैसे केप्लर 22 बी 2014 के बाद डिस्कवर हुए प्लनेट्स के नामों के आगे के2 लगने लगा K28B हमारे आज के हीरो प्लेनेट की डिस्कवरी इसके बस एक साल बाद 2015 में हुई टेलिस्कोप ने पकड़ा यह प्लेनेट एक रेड डार्फ सितारे K28 के अराउंड हर 33 डेज में एक चक्कर लगा रहा था और क्योंकि यह प्लेनेट अपने सितारे K218 से दूसरा नजदीकी प्लेनेट था इसीलिए इसे कोड दिया गया K218 बी बी यानी सेकंड प्लेनेट फ्रॉम इट्स सन अब जरा ध्यान देना क्योंकि आगे की कहानी आपको बताएगी कि एक प्लनेट को इतने दूर 124 लाइट इयर्स से समझ पाना कैसे साइंटिस्ट के भी पसीने छुड़ा देता है और कैसे बड़ी-बड़ी गलतियां भी हो जाती है सो केप्लर द्वारा भेजे गए इनिशियल डेटा को स्टडी करने परपता चला कि ये प्लनेट के 18 बी एक ऐसे टाइप का प्लनेट है जिस टाइप का प्लनेट हमारे पूरे सोलर सिस्टम में ही नहीं है इसे मिनी नेप्च्यून टाइप का प्लनेट कहा गया क्योंकि इसका रेडियस पृथ्वी के रेडियस से 2.6 टाइम्स ज्यादा था और मास 8.6 टाइम्स ज्यादा अब अगर साइज इतना विशाल हो तो इसका मास पृथ्वी से 17.6 टाइम्स ज्यादा होना चाहिए बट मास तो सिर्फ 8.
  • 6 टाइम्स ही ज्यादा है मतलब इसका मास यह बता रहा था कि यह प्लनेट ना तो पृथ्वी की तरह मेजरली सॉलिड पत्थरों का बना है और ना ही जुपिटर की तरह मेजरली गैस का जिसका डेंसिटी पर स्क्वायर सेंटीमीटर कुछ ज्यादा ही हल्का है तो ये लाइट मटेरियल आखिर हो क्या सकता था पानी और इसीलिए यही लीडिंग थ्यरी फिर निकल कर आई कि शायद यह ग्रह एक विशाल और गहरे महासागर के चादर से लिपटा हुआ है बट पानी के पानी के ही रूप में होने के लिए ग्रह के तापमान को 0 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होना पड़ेगा राइट वरना बर्फ बन जाएगा बट K28B अपने रेड वफ सितारे से जितनी दूरी में चक्कर काट रहा था उस डिस्टेंस को फैक्टर इन करके कैलकुलेशंस करने पर इस ग्रह का एवरेज टेंपरेचर -8 डिग्री सेल्सियस निकल कर आया सो क्या अनफॉर्चूनेटली बर्फ ने हमारे पानी मिलने के अरमानों पर ही पानी फेर दिया वेल आप देखोगे कैसे साइंटिस्ट की लाइफ एक रोलर कोस्टर राइड की तरह होती है जिसमें इनको पूरा अंधविश्वास होता है कि यह वाली सवारी तो नक्की मुझे मंजिल तक पहुंचा ही देगी चाहे कितनी भी ढलाने क्यों ना आ जाए और इसीलिए फिर साइंटिस्ट ने सोचा कि क्या अगर ग्रह का एटमॉस्फियर यानी वायुमंडल ही ऐसा हो कि वो एक चादर की तरह काम करके K28 बी के तापमान को 0 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ला देता हो ताकि पानी लिक्विड स्टेट में रह सके बट फिर इसका मतलब यह था कि हमें इस ग्रह के एटमॉस्फियर यानी वायुमंडल और वो किस चीज का बना है इसका पता लगाना बहुत जरूरी था जो क्लियरली उस वक्त केप्लर की काबिलियतों के बाहर था और इसीलिए फिर एंट्री होती है पिक्चर में हमारे दूसरे हीरो केप्लर के बड़े भाई हबल स्पेस टेलिस्कोप की हबल स्पेस टेलिस्कोप को स्पेस में साल 1990 में ही डिप्लॉय कर दिया गया था और यह स्पेस में तैरता हुआ एक जॉइंट माइक्रोस्कोप की तरह है जो किसी भी स्पेस ऑब्जेक्ट के डिटेल्ड हाई रेजोल्यूशन इमेजेस निकाल सकता है बट सबसे खास बात पता है क्या है हबल उन ऑब्जेक्ट्स के इमेजेस को लाइट के अलग-अलग स्पेक्ट्रम्स यानी वेवलेंथ्स में निकाल सकता है जैसे अल्ट्रावायलेट फॉर्म इंफ्रारेड फॉर्म और नॉर्मल विज़िबल लाइट के फॉर्म में ओके सो अब इससे एक 1170 ट्रिलियन कि.मी दूर ग्रह का पतला सा एटमॉस्फियर किस चीज का बना है कैसे पता चल सकता है वेल गेट रेडी टू बी माइंड ब्लोन देखो याद है हर 33 डेज में K28 बी अपने सूरज के चक्कर लगाता है राइट अब जब यह अपने स्टार के सामने होगा तो पीछे से स्टार इस पर अपनी रोशनी डाल रहा होगा अब इस वक्त अगर हम इसके एटमॉस्फियर की फोकस्ड और डिटेल्ड तस्वीर खींचे अलग-अलग लाइट के वेवलेंथ्स में तो टेलिस्कोप तक पहुंचती लाइट के कुछ हिस्से यानी कुछ वेवलेंथ्स कुछ स्पेक्ट्रम्स ब्लॉक हो गए होंगे उस ग्रह के एटमॉस्फयर के पार्टिकल से टकराकर ऐसा इसलिए क्योंकि अलग-अलग एलिमेंट्स के एटम्स और मॉलिक्यूल्स लाइट के कुछ पर्टिकुलर वेवलेंथ्स को अब्सॉर्ब करते हैं जो उनके एनर्जी लेवल्स को मैच करें जिसके आधार पर हम मेजर कर सकते हैं कि एग्जजेक्टली कौन से एलिमेंट उसके एटमॉस्फयर में मौजूद हो सकते हैं जैसे फॉर एग्जांपल एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव जो बेसिकली लाइट का ही साइंटिफिक नाम है यस लाइट एक वेव की तरह ही ट्रैवल करती है स्पेस में लेकिन इस वेव में इसके दो पीक्स के बीच डिस्टेंस बढ़ क्यों रहा है वेल क्योंकि लाइट का नेचर ही कुछ ऐसा है उसके वेवलेंथ का डिस्टेंस हमेशा बढ़ता चला जाता है जैसे-जैसे लाइट का वेव लॉन्ग डिस्टेंस ट्रैवल करते चले जाए काइंड ऑफ लाइट वेव स्ट्रेच हो जाती है और जितना ये स्ट्रेच होती है उसका वेवलेंथ और एज अ रिजल्ट एनर्जी लेवल्स भी चेंज होते हैं सो यहां पर देखना वही सेम लाइट का वेव शुरुआत करता है अपने सबसे पावरफुल फॉर्म गमा रेडिएशन से फिर धीरे-धीरे वो एक्सरे यूवी रे विजिबल लाइट इंफ्रारेड रेडियो वेव और माइक्रोवेव में ट्रांसफॉर्म होते चला जाता है जैसे-जैसे वो स्ट्रेच होता है अब ध्यान देना हर एक प्रकार के रेडिएशन का अपना एक वेवलेंथ होता है जैसे अल्ट्रावायलेट का 10 टू 400 नैनोमी है विज़िबल लाइट जो हमें दिखती है उसका 400 टू 750 नैनोमीटर्स है एटसेटरा  अब लेट्स से अगर K28B का एटमॉस्फयर स्पेसिफिकली 589 नैनो मीटर वेवलेंथ की लाइट को भारी मात्रा में ब्लॉक या डम करता है तो इसका मतलब वहां पर सोडियम एटम्स मौजूद है क्योंकि साइंटिस्ट को पता है क्वांटम मैकेनिक्स के एक्सपेरिमेंट्स के जरिए कि सोडियम एटम का एनर्जी लेवल 589 नैनोमीटर वेवलेंथ की लाइट के एनर्जी लेवल से मैच होता है अगर एटमॉस्फियर लेट्स से 121.6 नैनोमीटर्स की अल्ट्रावायलेट लाइट को ब्लॉक या डम करेगा तो वहां पर हाइड्रोजन एटम मौजूद है 770 नैनोमीटर्स पोटैशियम के लिए है और 1400 नैनोमीटर्स वाटर वेपर यानी कि पानी के लिए है एंड द लिस्ट गोज़ ऑन एंड ऑन इससे हम हर एक एलिमेंट और मॉलिक्यूल का यूनिक फिंगरप्रिंट पता लगा सकते हैं इस ब्रिलियंट मेथड को कहते हैं ट्रांसमिशन स्पेक्ट्रोस्कोपी जो लिटरली हमें अरबों मीलों दूर बैठकर भी एक ग्रह के कंपोजशन के बारे में बहुत कुछ बता देता है सो क्या हबल को सक्सेस मिला वेल 2018 में हबल ने इस ग्रह पर सबसे पहले वाटर वेपर यानी पानी के होने का दावा किया व्हिच वाज़ अ ह्यूज डिस्कवरी बट क्या ब्रह्मांड इतने आसानी से अपने राज खोलने वाला था हबल की कैपेसिटी लिमिटेड थी वो सिर्फ 1100 से 1700 नैनोमीटर्स की इंफ्रारेड फ्रीक्वेंसीज में ही ऑब्जर्व कर पाया जिस फ्रीक्वेंसी में वाटर वेपर मॉलिक्यूल्स मीथेन से बहुत ही ज्यादा मेल खाते हैं और इसीलिए जिसे हम पानी समझ रहे थे क्या अगर वो बस सिर्फ मिथेन गैस ही हो तो ऐसे सवाल कई साइंटिस्ट उठाने लगे और इसीलिए यहीं पर हम जल्द ही समझ गए कि इस डाटा पर ट्रस्ट नहीं किया जा सकता हमें और आधुनिक इक्विपमेंट्स की जरूरत पड़ने वाली है जो लाइट के एक बहुत ही वाइड स्पेक्ट्रम को स्टडी कर सके जिससे ऐसे मेजरमेंट एरर्स ना हो और स्टेज सेट हो चुका था इंसानों के सबसे एडवांस क्रिएशन के स्पेस में लॉन्च होने का द जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप अब जेम्स वेब टेलिस्कोप ने एक्जेक्टली क्या राज खोले यह जानने से पहले इस कहानी को ना कुछ वक्त के लिए यहीं पर पॉज कर देते हैं क्योंकि दूसरी तरफ इससे भी कुछ बहुत ही इंटरेस्टिंग चीज हो रही थी कोई और नहीं हमारे इंडियन ओरिजिन साइंटिस्ट निक्कू और उनकी टीम ने एक ब्रिलियंट कांसेप्ट खोज निकाला था निकू ने यूनिवर्स में एक वियर्ड इंटरेस्टिंग चीज ऑब्जर्व की थी कि ऐसे K28 बी जैसे मिनी नेप्च्यून प्लनेट्स तो यूनिवर्स में भर-भर के मौजूद हैं एक्सट्रीमली कॉमन है क्योंकि रेड डॉफ स्टार्स ही बहुत कॉमन है सो ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि ऐसे वर्ल्ड्स में भी एलियन लाइफ के पनपने का चांस हो हम क्यों सिर्फ पृथ्वी जैसे ही रॉकी प्लनेट्स पर ही फोकस कर रहे हैं और फिर ऐसे कई सारे मिनी नेप्च्यूनस को स्टडी करने के बाद निक्कू ने इनमें कुछ कॉमन ट्रेड्स को ऑब्जर्व किया इन प्लेनेट्स में यूजुअली वाइड डीप ओशंस होते हैं और इनका एटमॉस्फियर हाइड्रोजन गैस की मोटी चादर से ढका होता है जो ग्रह को वार्म रखता है ऐसे प्लेनेट्स को इन्होंने फिर एक नया नाम ही दे दिया हाइशियन वर्ल्ड्स कंबाइनिंग हाइड्रोजन एंड ओशियन वर्ल्ड्स और निक्कू मधुसूदन के हिसाब से K28 बी प्लेनेट उनके हाइशियन मॉडल में परफेक्टली फिट बैठता है अब हाइशियन वर्ल्ड मॉडल के हिसाब से इमेजिन करो एक ऐसा ग्रह जिसका एटमॉस्फियर हाइड्रोजन और हीलियम से डोमिनेट कर रहा है मतलब एटलीस्ट 80 से 90% हवा इसी की बनी है फिर इसमें कुछ कम मात्रा में जनरली मौजूद हो सकते हैं वाटर वेपर बिकॉज़ ऑफ द ह्यूज ओशन मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड और अमोनिया अब इस मॉडल की गारंटी देने के लिए प्रेडिक्शन यह था कि ऐसे वर्ल्ड्स में खास करके अमोनिया की मात्रा एक्सट्रीमली कम होनी चाहिए क्योंकि अमोनिया पानी में इजीली अब्सॉर्ब यानी कि सिंक हो जाता है सो जस्ट थिंक अबाउट इट एक ऐसी दुनिया जो ऑक्सीजन नहीं बल्कि हाइड्रोजन से भरी है इसमें ऐसे जीव हो सकते हैं जो हाइड्रोजन की सांसे लेते हैं जैसे पृथ्वी पर कुछ एक्सट्रीम माइक्रो ऑर्गेनिज्म्स और क्योंकि हाइड्रोजन एक ग्रीन हाउस गैस भी है इसीलिए वह चादर का काम करके हीट को ट्रैप करके समुद्र के पानी को लिक्विड स्टेट में भी रख सकता है यहां पर समुद्र सैकड़ों या इवन हजारों किलोमीटर भी गहरा हो सकता है जस्ट इमेजिन हमारे 10 कि.मी ही गहरे समुद्र में कितने विचित्र डीप सी क्रिएचर्स मौजूद है इससे 100 गुना ज्यादा गहराई में किस तरह की एलियन लाइफ पनप सकती है इतने एक्सट्रीम प्रेशर्स में बट लाइफ के लिए कुछ चीजों के डेलिकेट बैलेंस की जरूरत पड़ेगी जैसे हाइड्रोजन एटमॉस्फियर की चादर इतनी भी मोटी ना हो कि वो उस ग्रह की हालत वीनस की तरह बना दे जो अपने ही एटमॉस्फियर में जल रहा है या फिर समुद्र अगर बहुत ही गहरा हो तो इतने एक्सट्रीम प्रेशर में तो पानी आधी गहराई में ही कुछ स्पेशल किस्म के बर्फ में ट्रांसफॉर्म हो जाएगा i6 और i7 जो ऐसे एग्जॉटिक बर्फ है जो लिटरली क्ले जैसी प्रॉपर्टीज दिखाते हैं ऐसे बर्फ के मोटे लेयर्स अगर समुद्र के नीचे की चट्टानों और लिक्विड पानी के बीच बैरियर बना देंगे तो उस तरह लाइफ का जन्म नहीं हो पाएगा जैसे हमारी पृथ्वी में हुआ था हाइड्रोथर्मल वेंट्स यानी अंडर वाटर वोल्केनोस के थ्रू ही तो पृथ्वी को लाइफ की ऊर्जा का पहला पल्स मिला था बट ऐसे वाटर वर्ल्ड्स में लाइफ के जन्म ले पाने के और भी कई यूनिक तरीके हो सकते हैं जो कई साइंटिस्ट ने बकायदा प्रैक्टिकली एक्सपेरिमेंट्स के जरिए प्रूफ करके भी दिखाए यार 1952 का मिलर यूरी एक्सपेरिमेंट ही ले लो उसमें तो साइंटिस्ट स्टैनली मिलर ने कुछ केमिकल्स को लिटरली बिजली से एनर्जी देकर रिएक्ट करवा के 20 ऑर्गेनिक अमीनो एसिड्स प्रोड्यूस करके दिखाया और पता है ये एलिमेंट्स कौन से थे वेल एक्जेक्टली वही जो हाइशियन वर्ल्ड्स में भारी मात्रा में प्रेजेंट है हाइड्रोजन वाटर वेपर और मीथेन और बिजली को एनर्जी सोर्स की तरह इसीलिए यूज किया गया था क्योंकि प्लेनेट्स में तो लाइटनिंग्स और थंडरस्टॉर्म्स आम बात है तो क्या गड़कती बिजलियों ने जिंदगी को इस ग्रह में भी जन्म दिया हो सकता है क्या अच्छा साइंटिस्ट ने यूवी रेज हाइड्रोजन साइनाइड और कुछ मिनरल्स के कॉम्बिनेशंस को भी मिलाकर लाइफ के मॉलिक्यूल आरएनए के अंश को भी बनाकर दिखाया सो जिंदगी के जन्म लेने के अनेक रास्ते हो सकते हैं कितने तो हमारे इमेजिनेशन और नॉलेज से भी बाहर हैं अब यहां पर एक इंपॉर्टेंट पॉइंट टू नोट यह है कि कहानी में अब तक यानी कि 2021 तक हमारे पास कोई कंफर्म्ड सबूत नहीं थे कि K28 बी का एटमॉस्फयर एग्जैक्टली किन चीजों का बना है निक्कू की टीम ने प्योरली सिर्फ एक हाइपोथेटिकल मॉडल ही बनाया था यानी कि उन्होंने साइंस के सिद्धांतों को यूज करके एक सिमुलेशन बनाया था कि थ्यरी में ऐसी विशेषताएं वाले ग्रह में लाइफ पनपने की क्या संभावना है यह इसीलिए जरूरी था क्योंकि थ्यरी प्रेडिक्शंस यानी कि भविष्यवाणियां कर सकती है कि उस ग्रह में हमें एग्जैक्टली क्या-क्या मिल सकता है जिसको फिर आगे एडवांस टेलिस्कोप्स जैसे जेम्स वेब टेलिस्कोप कंफर्म कर सकते हैं और अगर थ्यरी और सबूत दोनों मेल खाते हैं तो मतलब हम वाकई में सच्चाई को देख रहे हैं दिस इज द ब्यूटी ऑफ साइंस हमें एक्सप्लेनेशन और एविडेंस थ्यरी और प्रूफ दोनों चाहिए होता है सो क्या 18 बी निक्कू के दावों पर खरा उतर पाया जनवरी 8 2022 ₹ 90,000 करोड़ रुपयों के इतिहास के सबसे आधुनिक टेलिस्कोप जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप को अंतरिक्ष में डिप्लॉय किया गया यह स्पेस टेलिस्कोप मानो हबल का डैडी है अगर हबल ब्लैक एंड वाइट टीवी है तो जेम्स वेब कलर्ड हाइट डेफिनेशन टीवी है अगर हबल छुपे राजों के आधे अधूरे शब्द पढ़ सकता है तो जेम्स वेब पूरा का पूरा पैराग्राफ्स ही पढ़ सकता है ऐसा इसीलिए क्योंकि याद है हबल बहुत ही छोटे इंफ्रारेड लाइट स्पेक्ट्रम को ऑब्जर्व कर सकता है रफली 100 से 2500 नैनोमी का बट जेम्स वेब 600 से 28,000 नैनोमीटर्स तक की रोशनी की फ्रीक्वेंसीज को ऑब्जर्व कर सकता है इस वाइड इंफ्रारेड के स्पेक्ट्रम में हम मोस्ट ऑफ द इंपॉर्टेंट एलिमेंट्स जैसे वाटर मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड अमोनिया एटसेट्रा को तो बिना कंफ्यूजन के मेजर कर ही सकते हैं पर साथ ही में इवन कॉम्प्लेक्स बायोसिग्नेचर्स यानी जिंदगी के सबूत जैसे डीएमएस डाई मिथाइल सल्फाइड मॉलिक्यूल की मौजूदगी का भी पता लगा सकते हैं सिर्फ यही नहीं यार जेम्स वेब का लाइट कैप्चर करने वाला मिरर लगभग ढाई गुना बड़ा है हबल के मुकाबले और छह गुना ज्यादा लाइट कैप्चर कर सकता है मगर साथ में यह हबल से 100 से 1000 गुना ज्यादा सेंसिटिव भी है क्योंकि एक्सट्रीमली लो टेंपरेचर -23 डिग्री सेल्सियस में ऑपरेट करता है जिस वजह से यह अपना खुद का इलेक्ट्रोमैग्नेटिक नॉइज़ क्रिएट ही नहीं करता यानी एक्सट्रीमली डिटेल्ड हाई डेफिनेशन हाई प्रसिशन और क्लेरिटी वाली तस्वीरें अगर कोई यंत्र एलियन लाइफ के सबूत पेश कर सकता था तो वो यही टेलिस्कोप था डिप्लॉय होते ही जेम्स वेब तुरंत अपने काम पर लग गया और मोस्टली मिड 2020 से ही K218B पर अपनी नजरें गड़ाने लग गया यह ऑब्जरवेशन लगभग 1 साल चला और फाइनली सेप्टेंबर 2023 को रिजल्ट्स सामने आए जेम्स वेब टेलिस्कोप ने मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड एंड यस इवन स्लाइट हिंट ऑफ डीएमएस के होने को कंफर्म किया अब निकू एंड टीम को पहले तो बिलीव ही नहीं हो रहा था क्योंकि यार यह एक बहुत बड़ी खबर है लेट मी एक्सप्लेन व्हाई देखो सबसे पहले तो हमें आज तक जितने भी सो कॉल्ड एलियन लाइफ पॉसिबल वाले प्लनेट्स मिले हैं ना हमें कहीं पर भी डीएमएस यानी डाई मिथाइल सल्फाइड के होने का कोई सबूत नहीं मिला है अब डीएमएस एक ऐसा मॉलिक्यूल है जो पृथ्वी पर सिर्फ और सिर्फ और कोई नहीं हां सिर्फ मरीन लाइफ जैसे अल्ग और प्लटन सी क्रिएट करते हैं एक मेजरेबल अमाउंट में यह केमिकल समुद्र की महक है जो हम सूंघते हैं जब भी हम समुद्र के करीब होते हैं स्वीट सी ओशनि सी कैबेजी और सल्फरी महक डीएमएस के अलावा ऐसा कोई और मॉलिक्यूल हम जानते ही नहीं है जो एकदम स्पष्टता से विदाउट एनी कंफ्यूजन यह कह सके कि यस यह लाइफ का सबूत हो सकता है कोई और मॉलिक्यूल लाइफ के डिटेक्शन में इसके करीब भी नहीं आ सकता ऐसे समझो अगर मीथेन का मिलना कान में फुसफुसाना है तो डीएमएस का मिलना कान में चिल्लाना है बट बहुत जरूरी था निक्कू को नक्की करना कि उन्होंने वाकई में डीएमएस ही खोजा है कोई गलती नहीं हुई हो मेजरमेंट में और इसीलिए निक्कू एंड टीम यहां पर नहीं रुके उन्होंने पहला मेजरमेंट इंफ्रारेड के लो स्पेक्ट्रम यानी कि 800 से 5000 नैनोमी के रेंज में लिया था अब उन्होंने इंफ्रारेड के मीडियम स्पेक्ट्रम यानी 6000 से 12,000 नैनोमी के रेंज में दोबारा मेजर करने की ठानी कंफर्म करने के लिए क्योंकि अगर वाकई में वहां पर डीएमएस मौजूद है तो उसे दोनों ही लो और मीडियम इंफ्रारेड स्पेक्ट्रम में कंसिस्टेंटली अपीयर होना चाहिए और फिर कई महीनों के ऑब्जरवेशंस के बाद आज से कुछ ही दिनों पहले ही फाइनल रिजल्ट्स आ चुका है एक बार फिर से जेम्स वेब टेलिस्कोप ने यह कंफर्म किया है कि यस के 188B में डीएमएस या फिर डीएमडीएस जो कि एक सिमिलर मॉलिक्यूल है वाकई में भारी मात्रा में प्रेजेंट है कितनी भारी मात्रा में वेल पृथ्वी से भी हजारों गुना ज्यादा मात्रा में व्हिच इज ह्यूज नाउ साइंटिस्ट एविडेंस हो रिसर्च डिटेक्टेड मॉलिक्यूल्स इन द एटमॉस्फियर ऑन द के 18 बी व्हिच ऑन अर्थ आर प्रोड्यूस बाय मरीन ऑर्गेनिज्म्स जस्ट थिंक अबाउट इट अगर वाकई में निकू का हशियन मॉडल सही है और एलियन लाइफ का वहां पर मौजूद होना ही डीएमएस का एक्चुअल सोर्स है तो वो पूरा प्लनेट एक विशाल सा प्लांट प्लांट लाइफ से भरा प्लनेट होगा मे बी हो सकता है कि वहां पर एवोल्यूशन ने कई और किस्म के वाटर बेस्ड क्रिएचर्स को भी जन्म दिया हो जो हमने आज तक नहीं देखे अरे देखे क्या हो सकता है हमारे इमेजिनेशन के ही बाहर हो देखो टू बी ऑनेस्ट आज तक किसी एलियन मिशन में हमें इतना बड़ा ब्रेक थ्रू नहीं मिला है और यहां पर एक्सट्रीमली सॉलिड पॉसिबिलिटी है चांस है कि शायद एलियन लाइफ पनप रही हो सकती है मगर अब भी कुछ और काम बाकी है जो हमें पूरा करना होगा फाइनल मूवी के क्लाइमेक्स देखने से पहले और सबूत इकट्ठा करने पड़ेंगे एंड ट्रस्ट मी निकू और उनकी टीम एक्साइटमेंट में शायद ठीक से काम भी नहीं कर पा रही होगी क्योंकि अगर यह डिस्कवरी सही साबित होती है ना तो इनका नाम लिटरली इतिहास में चला जाएगा देखो जेम्स वेब ने डीएमएस की मौजूदगी को अप्रूव दो बार तो कर दिया है बट अब भी जो सबूत हमें मिले हैं ना उनकी एक्यूरेसी यानी सटीकता थ्री सिग्मा लेवल की है यानी कि 99.7% सही है बट अब भी 3% चांस है कि सिग्नल में कुछ फ्लक्चुएशंस हो सकते हैं और साइंस में किसी भी बड़ी डिस्कवरी के लिए एटलीस्ट पांच सिग्मा लेवल का सबूत चाहिए होता है यानी कि एटलीस्ट 99.9994% श्योर कि यह सही है और इसीलिए निक्कू को जेम्स वेब टेलिस्कोप के मेजरमेंट्स का थोड़ा और टाइम चाहिए होगा इसे फाइव सिग्मा के स्टैंडर्ड के हिसाब से कंफर्म करने के लिए जो कि मेरे हिसाब से अब बस एक फॉर्मेलिटी की तरह ही है बट सबसे बड़ी चीज जो हमें निश्चित करनी होगी वो यह है कि डीएमएस का लाइफ के अलावा वाकई में इस ग्रह K218B में कोई और सोर्स नहीं है क्योंकि इतने एक्सट्रीम मात्रा में हमें डीएमएस जो मिला है क्या अगर उसका टोटली कोई और ही सोर्स हो जो अभी तक साइंस समझ ही नहीं पाया है जैसे कुछ लैब एक्सपेरिमेंट्स में साइंटिस्ट ने डीएमएस को यूवी लाइट और मॉलिक्यूल्स जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड के इंटरेक्शन से भी बनाकर दिखाया था तो इसमें तो लाइफ की कोई जरूरत नहीं पड़ी राइट डीएमएस को इवन कुछ कॉमेट्स में भी डिटेक्ट किया गया है नो डाउट काफी कम मात्रा में लेकिन दूसरी तरफ निकू एंड टीम तो एकदम कॉन्फिडेंट है कि हाईएन मॉडल के हिसाब से K28 भी एकदम फिट बैठता है और यहां पर लाइफ होनी ही चाहिए डीएमएस का कोई और सोर्स यहां पर हो ही नहीं सकता क्योंकि बाकी सोर्सेस इतनी मात्रा में डीएमएस प्रोड्यूस ही नहीं कर सकते अगर हमें इसके पीछे कोई नॉन लाइफ सोर्स मिल भी जाता है तो वह भी अपने आप में एक बड़ी डिस्कवरी होगी मगर इस डीएमएस मॉलिक्यूल की इसी स्टेटस की वजह से कई साइंटिस्ट यह सवाल उठा रहे हैं कि यार यह डीएमएस पर क्या हम एकमात्र भरोसा भी कर सकते हैं क्या क्योंकि अगर इसके क्रिएशन के कुछ और भी सोर्सेस हो सकते हैं तो 1% का भी रिस्क क्यों ले और फाइनली इस अनसुलझे राज की एक और एक कड़ी बाकी रह गई है साइंटिस्ट को अब तक K28 बी के एटमॉस्फियर में इथेन का कोई सबूत नहीं मिला है जो एक लार्ज मिसिंग पजल है क्योंकि मॉडल के हिसाब से जहां पर भी डीएमएस मिलता है वहां पर उसका एक कॉमन बाय प्रोडक्ट इथेन भी भारी मात्रा में मौजूद होना चाहिए लेकिन इथेन हमें अभी तक नहीं मिला है जिस वजह से कुछ ऐसे भी सवाल खड़े हो गए हैं कि कहीं हमारा ट्रांसमिशन स्पेक्टोग्राफी का मॉडल ही इनकंप्लीट तो नहीं है या फिर डिटेक्शन ही इनक्यूरेट तो नहीं हुआ हो सो बेसिकली पूरे साइंटिफिक कम्युनिटी में एक डिबेट ही छिड़ गई है जैसे हर एक बड़े डिस्कवरी के वक्त होता है अब ये सारा कंफ्यूजन क्लियर अगले रिपोर्ट में ही होगा जिसमें निकू एंड टीम के कुछ इंपॉर्टेंट फोकस एरियाज होंगे नंबर वन डीएमएस होने के सबूत को फाइव सिग्मा लेवल से कंफर्म करना नंबर टू इथेन की मौजूदगी को डिस्कवर करना जो डीएमएस का एक बाय प्रोडक्ट है नंबर थ्री अमोनिया के ना मिलने में भी कंसिस्टेंसी हासिल रखना नंबर फोर डीएमएस और डीएमडीएस की मौजूदगी में डिफरेंस निकालना और फाइनली नंबर फाइव और ऑर्गेनिक और सल्फर बेस्ड एलिमेंट्स को ढूंढना जो क्लेरिटी दे सके कि यह डीएमएस का सोर्स लाइफ है या फिर कुछ और बट पता है सबसे गंभीर और सीखने लायक बात क्या है देखो जेम्स वेब टेलिस्कोप कोई निक्कू के चाचा का टेलिस्कोप तो नहीं है कि जब भी मन मर्जी करे यूज़ कर लो इसको यूज करने के लिए एक बहुत ही रोबस्ट अप्रूवल सिस्टम है जिसमें लॉन्ग वेटिंग पीरियड्स होते हैं बट साइंस में एक बड़ी खोज करने का काम इतना सिंपल नहीं होता है कि बस टेलिस्कोप लगाया और फोटो खींच ली और सच्चाई सामने जितना इंपॉर्टेंट काम टेलिस्कोप से ऑब्जरवेशन करना है उससे कई ज्यादा इंपॉर्टेंट काम थ्योरेटिकल लेबोरेटरी और कंप्यूटर मॉडल्स को रिफाइन करना होता है और ये सारा काम पैरेलली चलते रहता है हशियन मॉडल्स को हमें और गहराई से समझना होगा वहां के एटमॉस्फियर को वहां के क्लाइमेट और वहां की केमिस्ट्री को हमें और डिटेल में सिमुलेट करना सीखना होगा ताकि हम ऐसे ग्रहों की बारीकियों को समझ पाए और और बेहतर प्रेडिक्शनंस करें हमें लैब्स में डीएमएस के बनने के दूसरे नॉन बायोलॉजिकल तरीके खोजने पड़ेंगे ताकि हम गलत दरवाजे के सामने ना ठकठकाएं और साथ ही में हमें हाईियन मॉडल के अलावा दूसरे साइंटिफिक मॉडल्स भी क्रिएट करने होंगे जो शायद K28B की विशेषताओं के साथ और स्ट्रांग तरीके से मैच कर सके सो जस्ट इमेजिन बस सिर्फ एक डिस्कवरी के लिए हमें एक साथ कितने सारे दिशाओं में पैरेलली काम करना पड़ता है कितने सारे फेलियर्स का सामना करना पड़ता है तो ऐसे में क्या आपको नहीं लगता कि एक साइंटिस्ट डीमोटिवेट नहीं हो जाता होगा वेल बिल्कुल भी नहीं इनफैक्ट एग्जैक्टली यही तो साइंटिस्ट का इंजन है क्यूरियोसिटी अनसुलझी पहेलियां छुपी हुई कड़ियां धीरे-धीरे खुलते राज जो महसूस कराए कि आप एक बहुत बड़ी डिस्कवरी के एकदम करीब हो यही वो फीलिंग है जिसके लिए हर साइंटिस्ट जीता है यही वो फितरत है जो हमें जिंदा होने का एहसास देता है रास्ता चाहे कितना भी अंधेरा हो मंजिल चाहे कितनी भी अदृश्य हो उत्सुकता की रोशनी ने हमें हमेशा मंजिल तक पहुंचाया है हम भले ही सितारों की धूल से भी छोटे हैं मगर फिर भी हम में इनसे ज्यादा आग है क्योंकि इस अनंत अंधेरे में हम एक हल्की सी चिंगारी जो खोज रहे हैं रेडिएशन के तूफानों के शोर में हम जिंदगी की एक धड़कन ढूंढ रहे हैं हो सकता है कि यह धड़कन हमारी तरह खून की ना हो मगर फिर भी इसकी एक गूंज इंसानी इतिहास बदल देगी धर्म की किताबों की तकदीरें बदल देगी हमारे हाथों की लकीरें बदल देगी और शायद उन्हें ढूंढकर हम खोई हुई इंसानियत को ही वापस खोज लें बंटवारों को और बांटने वालों को मिटाकर एक हो जाए और मिलकर हमारी सभ्यता को और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएं | Hype vs Reality: Is This Planet Really Hiding Life? so you find the answer .

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