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From Balloons to Billion Dollar Tyres – The Rise of MRF and K. M. Mammen

From Balloons to Billion Dollar Tyres – The Rise of MRF and K. M. Mammen

From Balloons to Billion Dollar Tyres – The Rise of MRF and K. M. Mammen

  • From Balloons to Billion Dollar Tyres – The Rise of MRF and K. M. Mammen किसको पता था कि कभी बलूंस बेचने वाला आज बिलियन डॉलर्स की कंपनी खड़ा कर देगा जो आज के डेट में इंडिया का सबसे बड़ा टायर मैन्युफैक्चरर है इंडियंस कभी क्वालिटी टायर नहीं बना पाएंगे ये कहने वाले फॉरेन ब्रांड्स को एमआरएफ ने ना सिर्फ अपने देश से निकाल फेंका बल्कि उनके ही देश में जाकर आज उनसे ही कंपीट कर रहा है आज के बाइक्स कार्स बस ट्रक्स एंड जेसीबी के साथ-साथ इंडियन एयरपोर्ट्स के सुखोई एयरक्राफ्ट का भी टायर बनाता है साल 2011 से 2021 तक एमआरएफ का शेयर प्राइस 12 गुना तक बढ़ चुका था यानी कि अगर आप 2011 में एमआरएफ का 1 लाख का शेयर लेते तो 2021 तक आपके पास 12 लाख होते और यह भी बताता चलूं कि एमआरएफ का शेयर आज के डेट में इंडिया का सबसे महंगा शेयर है आज इन्होंने इंडिया के टायर मार्केट का 25 % शेयर पर कब्जा कर रखा है साथ ही यह 65 से ज्यादा देशों में अपने टायर्स को एक्सपोर्ट करता है और इसका केवल विदेशों से ही 3 बिलियन डॉलर्स यानी कि करीब 225000 करोड़ का रेवेन्यू जनरेट होता है लेकिन सवाल तो ये उठता है कि कैसे एक बलून बेचने वाले ने दुनिया का दूसरा टफेस्ट टायर बनाने वाली कंपनी को खड़ा कर दिया वो भी तब जब इंडियन मार्केट में फॉरेन ब्रांड्स का दबदबा हुआ करता था |
  • और वो कौन सी स्ट्रेटजी थी जिसके दम पर एमआरएफ ने ना सिर्फ इंडिया में बल्कि विदेशों में भी झंडा गाड़ा यह साल था 1979 जिसमें एमआरएफ का ऑफिशियल नेम मद्रास रबर फैक्ट्री रखा गया था लेकिन इससे पहले इस कंपनी का नाम मैस फील्ड टायरन रबर हुआ करता था और 1956 के लास्ट क्वार्टर से इस कंपनी ने टायर बनाना शुरू किया था लेकिन यह कहानी शुरू होती है आजादी के पहले से जैसा कि हम सबको पता है कि भारत को आजादी काफी मुश्किलों से मिली थी और लोगों से छोटा-बड़ा जितना भी हो पाता था वह आजादी की लड़ाई में साथ देते थे ऐसे ही एक बैंक और न्यूज़पेपर के ओनर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपने न्यूज़ पेपर्स में छापा करते थे एंड उनके इसी काम को देखते हुए हुकूमत ने उनकी पूरी संपत्ति जब्त करने के साथ ही उनको 2 सालों के लिए जेल में डाल दिया यह इंसान कोई और नहीं बल्कि एमआरएफ के फाउंडर केएम ममन मप्पी लाई के फादर थे ममन केरला के एक क्रिश्चियन फैमिली में जन्मे हुए थे बचपन से ही वो एक एंबिशियस लड़के थे और कभी भी बड़ा सोचने से नहीं डरते थे और उनकी यही क्वालिटी आगे चलकर उनको बड़ा आदमी बनाती है जब उनके फादर को जेल में डाला गया था तब वो मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे एंड उस इंसिडेंट के बाद उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और जैसे-तैसे करके वो कॉलेज से ग्रेजुएट कर पाए अब उनके फैमिली की जिम्मेदारी उनके सर पर आ चुकी थी शुरुआती समय में में वो मार्केट से बलून खरीदते और उनमें हवा भरकर बस स्टैंड एंड रेलवे स्टेशन पर जा जाकर बेचते थे इस काम से उनका और उनके फैमिली का जैसे-तैसे गुजारा हो रहा था लेकिन वो इससे खुश नहीं थे क्योंकि उनको तो कुछ बड़ा करने की भूख थी इसलिए 1946 में अपनी वाइफ के साथ मिलकर उन्होंने एक छोटा सा बलून मैन्युफैक्चरिंग हब सेटअप किया जहां वह अब खुद से बलून बनाते और फिर इसमें हवा भरकर मार्केट में बेचते उनका यह बिजनेस काफी अच्छा चल रहा था |
  • एंड अब वह पहले से ज्यादा मार्जिन कमा पा रहे थे कुछ सालों तक टॉय बलूस बनाते बनाते उन्हें एक आईडिया आया उन्होंने सोचा कि बलून भी रबर से ही बनती है और टॉयज भी तो क्यों ना टॉय बलूस बनाने के अलावा टॉयज भी बनाना शुरू कर दिया जाए एंड इसी आईडिया के साथ 1949 से उन्होंने टॉयज बनाना भी चालू कर दिया एंड उनका यह बिजनेस उनको डबल मार्जिन कमा कर दे रहा था हालांकि इस सक्सेस से भी ममन खुश नहीं थी उनको तो तलाश थी एक बड़ी और बेटर अपॉर्चुनिटी की और किस्मत तो देखो कि उनको वो अपॉर्चुनिटी मिल भी जाती है दरअसल उसी समय उन्हें अपने कजन के टायर रिथिंग बिजनेस के बारे में पता चलता है |
  • जहां वो काफी सारे टायर रिथ डिंग प्लांट्स का यूज किया करते थे जिसमें वो पुरानी टायर्स के ऊपर नई थ्रेड पैटर्न चिपका देते थे जहां वो टायर्स को बिल्कुल नए की तरह बना देता था यहां ममन ने एक प्रॉब्लम नोटिस किया और बाद में जाकर उसको अपने प्रोडक्ट से सॉल्व किया दरअसल जो थ्रेड पुरानी टायर्स को नई करने के लिए यूज होते थे वो एक तो विदेशी ब्रांड्स बनाया करते थे ऊपर से उनकी क्वालिटी भी कोई खास नहीं होती थी मम्मे ने देखा कि मार्केट में कोई लोकल प्लेयर नहीं है जो इस तरह के थ्रेड रबर को बनाता हो इसी गैप को समझते हुए 1952 में उन्होंने थ्रेड रबर की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी उनका बनाया गया थ्रेड रबर बाकी के फॉरेन ब्रांड्स के कंपेयर में इतना अच्छा निकला कि सिर्फ 4 सालों के अंदर उनकी कंपनी ने थ्रेड बिजनेस के 50 पर मार्केट शेयर पर कब्जा कर लिया और कई सारे फॉरेन कंपनीज को इंडियन मार्केट से एग्जिट करने पर मजबूर कर दिया इतने कम समय में इंडिया के इस मार्केट पर राज करने के बाद ममन ने डिसाइड किया कि क्यों ना वो पूरी टायर ही बनाना शुरू कर दे लेकिन उन्होंने यहां एक बहुत बड़ी गलती कर दी उन्होंने टायर मार्केट में एंटर करने से पहले अपने कंपीटीटर्स को समझा ही नहीं जिसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा दरअसल बात यह थी कि ममन को थ्रेड रबर बनाने का एक्सपीरियंस तो था जिससे वह टायर भी बना सकते थे लेकिन क्वालिटी टायर बनाने के लिए उन्हें कोई फॉरेन ब्रांड की टेक्निकल सपोर्ट की जरूरत थी कई सारी कंपनी से बात करने के बाद अमेरिका की एक कंपनी सामने आती है जिसका नाम था मैस फील्ड टायर एंड रबर मम्म ने उनके साथ टेक्निकल कोलबो मेशन करके उनकी टेक्नोलॉजी को यूज करना शुरू कर दिया एंड अब यह क्वालिटी टायर बनाकर इंडिया में मैस फील्ड टायर एंड रबर के नाम से बेचना शुरूकर देते हैं | लेकिन उसके बाद अब असली प्रॉब्लम शुरू होती है मैस फील्ड टेक्नोलॉजी से बने टायर्स अमेरिका के लिए तो अच्छे थे लेकिन इंडियन कंडीशंस के लिए यह बिल्कुल भी सूटेबल नहीं थे और इसी बात का फायदा उठाकर एजिस्टिफाई बनाने के लायक ही नहीं है दरअसल उस समय इंडियन टायर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर डन लॉफ फायर स्टोन और गुड ईयर जैसे तीन मल्टीनेशनल कंपनीज इस हद तक डोमिनेट कर रहे थे कि टायर का प्राइसिंग प्रोडक्शन और यहां तक कि सप्लाई भी खुद से ही डिसाइड करते थे और किसी भी नए प्लेयर को मार्केट में उतरने ही नहीं देते थे | बाय चांस
  • बाय चांस मनफील्ड जैसा कंपनी आ भी जाए तो यह उसको बदनाम करके मार्केट से आउट कर देते थे लेकिन एमआरएफ हार मानने वालों में से नहीं था दरअसल तीनों मल्टीनेशनल ब्रांड्स में डनलप सबसे बड़ा प्लेयर था डन लॉप इंडियन गवर्नमेंट से ऑर्डर्स लेने के मामले में सबसे ज्यादा आगे था और एमआरएफ को गवर्नमेंट का थोड़ा ही आर्डर दिया जाता था डनलप एक अनफेयर कंपटीशन कंडीशन क्रिएट कर रहा था जो कि देखा जाए तो अनफेयर कंपटीशन ना सिर्फ बिजनेस के लिए बल्कि पूरे देश के लिए ही घातक हो सकता है वो इसलिए क्योंकि वॉर के टाइम पर ज्यादा पैसे डिमांड करके या फिर सप्लाई कट करके यह कंपनीज देश का फायदा उठा सकती हैं यह सब देखकर इंडियन गवर्नमेंट ने मार्केट में फेयर कंपटीशन का माहौल क्रिएट किया और अपने होम ग्रोन कंपनीज को सपोर्ट करना शुरू किया एमआरएफ ने मार्केट में अच्छा खास शेयर पाने के लिए अपनी एडी चोटी एक कर दी थी दरअसल इस कंपनी ने इंडियन रूट्स के अकॉर्डिंग टायर बनाने के लिए साल 1963 में अपना रबर रिसर्च सेंटर सेटअप किया और कुछ ही दिनों में इसने यह टायर बना भी लिया शुरुआती दिनों में यह कंपनी टायर्स को बीटू बी फॉर्मेट में बेचा करती थी लेकिन उन्हें रिटेल सेगमेंट में भी एंट्री लेना था लेकिन उसमें सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह थी |
  • कि ओई कंपनीज एमआरएफ की टायर्स को यूज करते ही नहीं थे ईम का मतलब ऐसी कंपनीज जो गाड़ियों के पार्ट्स को खुद बनाती हैं और उन्हें खुद ही असेंबल करके बेचती हैं अब एमआरएफ के पास दूसरा ऑप्शन यह था कि वो अब ड्राइवर्स का सेकंड चॉइस बने यानी कि ऐसे कस्टमर्स को पकड़ें जो अपनी गाड़ी का टायर चेंज करवाने वाला हो हालांकि यह उतना आसान नहीं था इसलिए एमआरएफ ने एक ऐसे इंसान को हायर किया जिसे फादर ऑफ इंडियन एडवर्टाइज कहा जाता है जी हां उस इंसान का नाम है एलिक पद्मसिंह अगर आप इनको नहीं जानते तो मैं आपको बता दूं कि यह वही इंसान है जिसने बजज सर्फ और फेयर एंड हैंडसम का फेमस  कैम कैंपेन बनाया हुआ था एमआरएफ का ऐड कैंपेन बनाने के लिए इन्होंने सबसे पहले फील्ड में जाकर कई सारे ट्रक ड्राइवर्स से बात किया और इस सर्वे में उन्हें पता चला कि ट्रक ड्राइवर्स को स्ट्रांग और पावरफुल टायर्स की जरूरत है जिससे यह लंबे समय तक टिक पाएं एंड इसी नीट को हाईलाइट करते हुए अलिक ने एमआरएफ मसल मैन का ऐड बनाया था इस ऐड को टीवी कमर्शियल्स और बिल बोर्ड्स पर शो किया गया था जिसकी वजह से आम लोग इसको पहचानने लग गए थे और जब भी टायर चेंज कराना होता था तो वोह एमआरएफ की टायर ही लगवाना पसंद करते थे अब मार्केटिंग और रिसर्च के दम पर एमआरएफ ने हाई क्वालिटी टायर बनाने के साथ ही कंज्यूमर्स को अपने साइड करने में कामयाब हो चुका था जिसकी वजह से उन्हें मार्केट का अच्छा खासा शेयर मिला यह सब यहीं पर खत्म नहीं हुआ इंडियन मार्केट पर राज करने के बाद एमआरएफ ने अपने टायर्स को एक्सपोर्ट करना चालू कर दिया था और यहां से एमआरएफ एक इंडिया का मल्टीनेशनल ब्रांड बन चुका था जल्द ही 1967 से एमआरएफ ने यूएसए में भी टायर एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया था और यह इंडिया का पहला ऐसा कंपनी नहीं था जिसने यूएस को टायर एक्सपोर्ट किया था कभी खुद के देश में फॉरेन ब्रांड से हार जाने वाला आज उनके ही देश में उनसे ही कंपीट कर रहा था अब साल 1970 आ चुका था |
  • और इंडिया का ऑटोमोबिल सेक्टर ग्रो कर रहा था अब पहले के मुकाबले इंडिया के सड़कों पर काफी सारी गाड़ियां चल रही थी इसी साल एमआरएफ ने गाड़ियों की बढ़ती हुई डिमांड को देखते हुए केरला के कोटेया में अपना दूसरा प्लांट भी एस्टेब्लिश कर दिया 1973 में अब एमआरएफ ने नालन टायर्स को भी डेवलप कर लिया था जो सस्ता के साथ-साथ टिकाऊ भी थे नालन टायर्स का डेवलपमेंट एमआरएफ के लिए एक ग्रेट स्ट्रेटजी साबित हुआ जिसकी वजह से एक तरफ तो फॉरेन ब्रांड्स मार्केट से एग्जिट कर गए और दूसरी तरफ इंडियन कंडीशंस में नायलॉन टायर्स ज्यादा सूटेबल थे देखा जाए तो एमआरएफ शुरुआती दिनों में केवल बस और ट्रक्स का टायर बनाता था लेकिन नालन टायर्स के आते ही इसने पैसेंजर कार्स के सेगमेंट में भी एंट्री मार ली नालन टायर्स इंडियन मार्केट में धूम बचा रहे थे और एमआरएफ के साथ सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन 1979 में मैस फीड टाएरन रबर के साथ एमआरएफ का रिलेशन खराब होने लगा और आखिर में जाकर यह दोनों अलग हो जाते हैं और फाइनली एमआरएफ का नाम बदलकर मद्रास रबर फैक्ट्री रख दिया गया अब एमआरएफ एक इंडिपेंडेंट कंपनी बन चुका था और अब तक यह भारत से लेकर विदेशों तक में छा चुका था |
  • लेकिन एमआरएफ के लिए यह सक्सेस काफी नहीं था एमआरएफ का मिशन था कि वो टायर मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बनकर उभरे इस मिशन को पूरा करने के लिए इसने कई सारी विदेशी कंपनीज के साथ टाई अप किया और खुद को साल दर साल इंप्रूव करते गया इसलिए साल 1988 में जब maruti’s में एमआरएफ के टायर्स लगाने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण था खैर अभी तक एमआरएफ बस ट्रक्स कार्स और मोटर बाइक्स के लिए टायर बनाते थे लेकिन एमआरएफ ने 2004 में जिग्मा सीरीज के टायर्स डेवलप किए जो कमर्शियल व्हीकल्स जैसे कि जेसीबी और एग्रीकल्चर मशीनस में लगाए जाते थे फिर 2006 में हाई परफॉर्मेंस टायर की नीट को पूरा करने के लिए इन्होंने एसयूवी के लिए एमआरएफ वांडरर और मोटर बाइक के लिए एमआरएफ मिटर जैसे टायर बनाए और 2008 में इन्होंने इंडियन एयरफोर्स के सुखोई 30 एयरक्राफ्ट के लिए भी टायर बनाए थे इन्हीं एक्सपेंशंस की वजह से एमआरएफ ने 2007 में टोटल $ बिलियन डॉलर का टर्नओवर किया था और ऐसे ही 2011 यानी कि सिर्फ 4 सालों के अंदर एमआरएफ ने 2 बिलियन डॉलर का टर्नओवर अचीव किया था और आज की डेट में एमआरएफ का वैल्यूएशन 3 लाख करोड़ से भी ज्यादा है और सिर्फ विदेशों से यह साल का 3 बिलियन डॉलर्स यानी कि 25000 करोड़ का रेवेन्यू जनरेट कर रहे हैं एमआरएफ टायर्स के बिजनेस में तो धूम मचा ही रही थी लेकिन वो इस बिजनेस को अब डायवर्सिफाई करने का सोचते हैं एंड इसलिए 1989 में एमआरएफ दुनिया का सबसे बड़ा टॉय मैन्युफैक्चरिंग ब्रांड सपो इंटरनेशनल के साथ कोलैबोरेशन करता है और उसी साल एक ऑस्ट्रेलियन ब्रांड के साथ मिलकर इंडस्ट्रियल पेंट्स भी बनाने लगता है और यहां तक कि एक इटली की कंपनी के साथ मिलकर कन्वेयर बेल्ट जो कि आप एयरपोर्ट्स पर देखते हो वो भी बनाना शुरू कर देते हैं वैसे अब एमआरएफ को फ्यूचर का डर तो था नहीं क्योंकि कोई भी गाड़ी लॉन्च होगी तो टायर्स तो लगने ही थे लेकिन फिर भी एक चीज के ऊपर डिपेंडेंसी ठीक नहीं होती इसलिए एमआरएफ ने टायर्स के अलावा टॉयज इंडस्ट्रियल पेंट्स और कन्वेयर बिल्ट बनाने में भी फोकस किया जैसा कि आपने देखा कि एमआरएफ मार्केटिंग में काफी ज्यादा सीरियस है और इस इसलिए उन्होंने सीधे फादर ऑफ इंडियन एडवर्टाइज को हायर किया था लेकिन इस बार एमआरएफ ने ऐसी मार्केटिंग स्ट्रेटजी लगाई कि वह हर बच्चे की जुबान पर चढ़ गए दरअसल एमआरएफ ने अपनी मार्केटिंग के लिए इस पार क्रिकेट को चुना था उसमें भी उन्होंने अपना लोगो पहले सचिन और उसके बाद विराट कोहली के बैट पर लगाया |
  • लेकिन सचिन और विराट ही क्यों इस पर एमआरएफ का कहना था कि वो खुद अपने फील्ड के बेस्ट हैं तो उनका लोगो भी क्रिकेट के बेस्ट प्लेयर पर ही लगना चाहिए लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं थी बल्कि इसके पीछ एमआरएफ का एक मास्टर स्ट्रोक था जिसकी वजह से उन्होंने maruti-suzuki  मोटर्स और yamaha.com पावर अवार्ड ऑटोमोबिल इंडस्ट्री का सबसेबड़ा अवार्ड है और यह उसी को दिया जाता है जो अपना प्रोडक्ट क्वालिटी और कस्टमर सेटिस्फैक्ट्रिली है कि कैसे अपने मन में स्ट्रांग चाह रखने से कोई भी आदमी मल्टीनेशनल कंपनी को भी हरा सकता है ना सिर्फ अपने देश में बल्कि उनके देश में जाकर एमआरएफ के फाउंडर मम्म जी के इन्हीं कंट्रीब्यूशंस की वजह से उन्हें 1993 में पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था | From Balloons to Billion Dollar Tyres – The Rise of MRF and K. M. Mammen .

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